अधिकांश लोग दुर्गा पूजा करते हैं और उनकी संख्या इतनी होती है कि सबके लिये ब्राह्मण उपलब्ध ही नहीं हो सकते। ऐसे में आवश्यकता होती है कि जो लोग स्वयं पढ़-समझ सकते हैं उनके लिये सरलता पूर्वक विधि और मंत्र उपलब्ध हो जिसके द्वारा वो स्वयं भी पूजा कर सकें। इस आलेख में दुर्गा पूजा की विधि और मंत्र दी गयी है जिससे वो भक्त लाभान्वित हो सकते हैं
- वर्ष में चार बार नवरात्रा होती है जो आश्विन, माघ, चैत और आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्षों में होती है।
- इनमें से आश्विन मास में होने वाली शारदीय नवरात्री कहलाती है।
- शारदीय नवरात्री में बहुत विस्तृत रूप से दुर्गा पूजा का आयोजन होता है।
- शारदीय नवरात्रा में मंदिरों में भी प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। बड़े-बड़े पंडाल बनाकर भव्य मेला का भी आयोजन किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त अक्षय नवमी को भी दुर्गा पूजा की विशेष विधि है।
- अन्य मासो में अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी दुर्गा पूजा हेतु विशेष महत्वपूर्ण है।
- दुर्गा उपासकों को शाक्त कहा जाता है।
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सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
ब्रह्मरूपे सदानन्दे परमानन्दस्वरूपिणि।
द्रुतसिद्धिप्रदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्त्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दुर्गादेवीम् आवाहयामि॥
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अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।
कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्॥ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आसनं कल्पयामि॥
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गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम्।
तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पाद्यं समर्पयामि॥
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गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया।
गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा॥ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि॥
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