हिन्दू पौराणिक कथाओं में अष्ट वसु यानी आठ वसु का विशेष स्थान है। देवताओं की श्रेणी में आने वाले यह आठ वसु सृष्टि के आरंभिक काल से जुड़े हैं और इनकी कथा मनोरंजक होने के साथ-साथ अनेक शिक्षाएं भी देती है। इन्हें प्रकृति के प्रमुख तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले देवता भी माना जाता है। आइए, जानते हैं कौन हैं अष्ट वसु और इनसे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
अष्ट वसुओं के नाम
वसु शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘निवास करने वाला’। विभिन्न पुराणों में, अष्ट वसुओं के नामों में थोड़ा-बहुत अंतर मिलता है। मुख्य रूप से निम्नलिखित आठ नाम बताए जाते हैं:
1. आप
2. ध्रुव
3. सोम
4. धर (धरा)
5. अनिल
6. अनल
7. प्रत्यूष
8. प्रभास
अष्ट वसु और वशिष्ठ ऋषि का श्राप
अष्ट वसुओं से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा ऋषि वशिष्ठ से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, अष्ट वसु अपनी पत्नियों के साथ एक बार मेरु पर्वत पर भ्रमण के लिए गए। वहां, वसुओं की पत्नियों में से एक ने ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय को देखा और उसकी सुंदरता से मोहित हो गई। उसने अपने पति ‘द्यौ’ (आठ वसुओं में से एक) से कामधेनु को हासिल करने की इच्छा प्रकट की। अन्य वसुओं के सहयोग से, द्यौ ने कामधेनु गाय और उसके बछड़े को चुरा लिया।
ऋषि वशिष्ठ अपने आश्रम लौटे और उन्हें कामधेनु की अनुपस्थिति का एहसास हुआ। अपनी दिव्य दृष्टि से घटना को जानने के बाद, क्रोधित वशिष्ठ ने अष्ट वसुओं को श्राप दे दिया कि वे सभी मृत्यु लोक में मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे। हालांकि, वसुओं की विनती पर ऋषि वशिष्ठ ने अपने श्राप को नरम किया और कहा कि सात वसु जन्म के तुरंत बाद अपनी दिव्यता में वापस लौट जाएंगे, लेकिन आठवें वसु, द्यौ को लंबे समय तक मानव जीवन के कष्टों को सहना होगा।
गंगा और वसुओं का उद्धार
प्रसिद्ध कथा के अनुसार, श्राप के फलस्वरूप अष्ट वसुओं का जन्म शांतनु और गंगा के पुत्र के रूप में हुआ। देवी गंगा ने पहले सात शिशुओं को जन्म लेते ही नदी में बहाकर अपने दिव्य लोक में वापस भेज दिया। शांतनु इस कृत्य का कारण जानकर गहरे दुःख में डूब गए और जब गंगा आठवें शिशु को बहाने वाली थीं, तो उन्होंने गंगा को रोक दिया। यह आठवां पुत्र भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिन्होंने बाद में महाभारत में केंद्रीय भूमिका निभाई। भीष्म को श्राप के कारण एक लंबा और दुखद जीवन जीना पड़ा, हालांकि वह विद्वान, साहसी और धर्मी थे।
अष्ट वसु की शिक्षाएं
अष्ट वसु की कथा कई प्रकार की शिक्षाएं देती है। सबसे महत्वपूर्ण है कर्म और उसके परिणामों का सिद्धांत। यह कथा बताती है कि हर कार्य के, चाहे अच्छे हों या बुरे, परिणाम होते हैं और किसी को भी अपने कर्मों के फल से नहीं बचा जा सकता। इसके साथ, यह कहानी दया और क्षमा के महत्व पर भी जोर देती है। ऋषि वशिष्ठ, क्रोधित होते हुए भी, वसुओं के प्रति आंशिक रूप से दया दिखाते हैं और उनके श्राप को कम करते हैं।
निष्कर्ष
अष्ट वसु की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं की समृद्ध परंपरा का एक आकर्षक और शिक्षाप्रद उदाहरण है। इस कहानी से हम सीखते हैं कि लालच और आवेगी निर्णयों से बचना चाहिए, और धैर्य और सहानुभूति का अभ्यास करना चाहिए। कर्म का नियम अटल है, और हमारे कार्यों के परिणामों को स्वीकार करना ही अंततः सही मार्ग की ओर ले जाता है।
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