Simantonnayana Sanskar | सीमन्तोन्नयन संस्कार
सबसे पहले तो सीमन्तोन्नयन संस्कार का अर्थ जान लेते हैं। यह दो शब्दों के मेल से बना हैं सीमंत तथा उन्नयन। इसमें सीमंत का अर्थ केश/ बालों से हैं तथा उन्नयन का अर्थ ऊपर उठाने से अर्थात एक पति अपने पत्नी के केशों को ऊपर उठाता है। गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में एक महिला का व्यवहार बदलने लगता हैं तथा उसे मानसिक अवसाद घेर लेते है। ऐसे समय में एक पति से यह अपेक्षा होती हैं कि वह एक स्वस्थ शिशु की प्राप्ति के लिए अपनी पत्नी को खुश रखे तथा उसकी हर इच्छा को पूर्ण करे।
इसके साथ ही सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar In Hindi) के माध्यम से महिला के मन में परिवर्तन लाया जाता है तथा उसे धर्म व आध्यात्म की शिक्षा दी जाती है। महिला के द्वारा शिक्षाप्रद कहानियां सुनने से केवल उसी में परिवर्तन नही आता बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
इसे आप एक उदाहरण लेकर समझ सकते है। जब अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ में था तब उस समय अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने की कथा सुनाई थी लेकिन उसको भेदकर उससे बाहर कैसे आया जाये इससे पहले ही सुभद्रा सो गयी थी। इसलिये जब अभिमन्यु बड़ा हुआ तब गर्भ में सुनी उस कथा के अनुसार उसने चक्रव्यूह भेद तो दिया था लेकिन उससे बाहर नही निकल पाया था।
सीमंतोन्नयन संस्कार कब किया जाता हैं?
पुंसवन संस्कार को गर्भावस्था के तीसरे माह में किया जाता है। इसके पश्चात सीमन्तोन्नयन संस्कार को छठे से आठवें माह के बीच किया जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार इसे गर्भावस्था के आठवें माह में करना शुभ माना गया हैं। दरअसल इसे करने का शुभ समय तब होता हैं जब शिशु का ज्यादातर विकास हो चुका होता हैं तथा उसमे सोचने व समझने की क्षमता विकसित हो जाती है।
ऐसे समय में वह शिशु गर्भ में अपनी माँ के भावों, उसकी क्रियाओं, बातों इत्यादि को सुन सकता है तथा उन पर अपने भाव भी प्रकट कर सकता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस समय यदि आपका मन प्रसन्न है तो आपका शिशु भी प्रसन्न होगा और यदि आपका मन दुखी हैं तो शिशु भी अंदर से दुखी होगा।
इसके साथ ही वह अपनी माँ तथा बाहर की आवाज़ों को सुनकर उन पर अपनी प्रतिक्रिया भी देने लगता है। इसलिये इस समय सीमंतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) किया जाना उचित माना गया है ताकि गर्भ में ही शिशु को संस्कार दिए जा सके तथा उसमे बुद्धि का विकास किया जा सके।
सीमन्तोन्नयन संस्कार का प्रयोजन क्या है?
गर्भ की तीसरी तिमाही में इसे करने से शिशु के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आता है तथा उस समय मिली शिक्षा उसे जीवनभर याद रहती है। ऐसे में शिशु को गुणकारी तथा बुद्धिमान बनाने के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है।
यदि आप इसे वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में देखे तो बहुत महिलाएं अपनी गर्भावस्था के आखिरी समय में शिक्षाप्रद कहानियां पढ़ती हैं तथा मधुर संगीत सुनती हैं जिसका प्रभाव उसके शिशु पर पड़ता है। बस इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसे धर्म कथाएं सुनाकर गर्भ से ही संस्कारी बनाया जाता है। बस यहीं सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar) का प्रयोजन या उद्देश्य होता है।
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