सनातन हिंदू धर्म विज्ञान एवं पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। हिन्दू धर्म का मुख्य आधार इसके वेद उपनिषद् और प्राचीन ग्रन्थ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसकी स्थापना देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा की गयी है। हिन्दू धर्म के रीतिरिवाज और त्योहारों का कुछ ना कुछ वैज्ञानिक महत्व अवश्य है जिसके कारण ही इसका मूल सनातनी स्वरूप समाप्त नहीं हुआ है। हिंदू धर्मग्रंथों में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बताये गए है। ये 16 संस्कार मनुष्य को अपने जीवन के विकास में सहायता करते है।
उपनयन संस्कार हिन्दू धर्म में बताये गए 16 संस्कारों में से एक है। इसे सभी संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन समय में यह संस्कार वर्ण के आधार पर किया जाता था। यह संस्कार तब किया जाता है जब बालक ज्ञान प्राप्त करने योग्य हो जाता है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेजने से पहले यह संस्कार किया जाता है। सामाजिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण जाति के बालक को 8 वर्ष में, क्षत्रिय बालक को 11 वर्ष एवं वैश्य जाति के बालक का 15 वर्ष में उपनयन संस्कार किया जाता है। प्राचीन समय में जिस बालक का उपनयन संस्कार नहीं होता था उसे मुर्ख की श्रेणी में रखा जाता था।
उपनयन संस्कार युवा अवस्था में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, इस संस्कार का लक्ष्य होता कि शिक्षा का आरम्भ करना तथा मनुष्य के जीवन में आने वाले हर चरण को अध्ययन के माध्यम से समझना और ज्ञान अर्जित करना। इस संस्कार के बाद व्यक्ति जीवन को नियमो के साथ और अच्छे से व्यतीत कर पाता है। गुरु अपने छात्रो के साथ रह कर उन्हें शिक्षा देते हैं और हमेशा साथ रहने के कारण वह उन्हें हर समय संस्कार और शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। उपनयन का अर्थ इ समीप होता है, और गुरुओ के समीप रहने से सकारात्मकता रहती है तथा जीवन में आ उन्नति करना सरल हो जाता है। हर युग में ज्ञान और शिक्षा को महत्वपूर्ण माना गया है,
उपनयन संस्कार में शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा प्राप्त होती है एवं उसके बाद यज्ञोपवीत / जनेऊ धारण किया जाता है। तत्पश्चात वह गुरु के पास जाकर वेदों का अध्ययन करता है। यह मान्यता है कि उपनयन संस्कार करने से से बच्चे की न केवल भौतिक, बल्कि आध्यात्मिक प्रगति भी अच्छी तरह से होती है।
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