मृत्यु के बाद क्यों जरूरी है तेरहवीं भोज? आत्मा को मिल जाती है मुक्ति!
हिन्दू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं भोज की परंपरा निभाई जाती हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि किसी की मौत के बाद तेरहवीं भोज क्यों जरूरी है और इससे क्या आत्मा शांति मिल जाती हैं. जानने के लिए पढ़ें ये लेख…
हिन्दू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं भोज का बहुत अधिक महत्व है. ये तेरहवीं भोज की परंपरा कई सदियों से चली आ रही है. गरुड़ पुराण में जिक्र किया गया है कि मृत्यु के बाद तेरहवीं तक आत्मा अपनों घर से सदस्यों के बीच ही रहती है. इसके बाद उसकी यात्रा दूसरे लोक के लिए शुरू होती है और उसके कर्मों का हिसाब किया जाता है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर तेरहवीं भोज क्यों किया जाता है और इससे उस मृत व्यक्ति आत्मा को क्या लाभ मिलता है?
पिंडदान का महत्व
गरुड़ पुराण के अनुसार, घर-परिवार के लोग मृतक की आत्मा की शांति के लिए नियमित रूप से पिंडदान करते हैं. मृत्यु के बाद 10 दिनों तक जो पिंडदान किए जाते हैं, उससे मृत आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है. 11वें और 12वें दिन के पिंडदान से शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है और फिर 13वें दिन जब तेरहवीं की जाती है. तब मृतक के नाम से जो पिंडदान किया जाता है, उससे ही वो यमलोक तक की यात्रा तय करती है. पिंड दान से आत्मा को बल मिलता है और वो अपने पैरों पर चलकर मृत्युलोक से यमलोक तक की यात्रा संपन्न करती है.
तेरहवीं भोज को क्यों माना गया जरूरी
आत्मा को मृत्युलोक से यमलोक पहुंचने में करीब एक साल का समय लग जाता है. माना जाता है कि परिजनों द्वारा 13 दिनों में जो पिंडदान किया जाता है, वो एक वर्ष तक मृत आत्मा को भोजन के रूप में प्राप्त होता है. तेरहवीं के दिन कम-से-कम 13 ब्राह्मणों को भोजन कराने से आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. साथ ही उसके परिजन शोक मुक्त हो जाते हैं. जबकि जिस मृतक आत्मा के नाम से पिंडदान नहीं किया जाता है. उसे तेरहवीं के दिन यमदूत जबरन घसीटते हुए यमलोक लेकर जाते हैं. ऐसे में यात्रा के दौरान आत्मा को काफी कष्ट उठाने पड़ते हैं. इसलिए मृतक की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं भोज को जरूरी माना गया है.
क्या आत्मा को मिलती है मुक्ति?
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि तेरहवीं भोज में जो खाना लोगों को खिलाया जाता है उससे ही आत्मा को शक्ति मिलती है और यमलोक का सफर आसानी से तय कर पाती है. इसलिए किसी व्यक्ति की मौत होने के 13व दिन बाद तेरहवीं भोज का आयोजन किया जाता है. इससे आत्मा को भी मुक्ति मिलती है. वरना आत्मा को मुक्ति पाने के लिए कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है.
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