पितृपक्ष – परिचय और जानकारी
पितृ पक्ष पितरों को याद और उनकी पूजा करने का समय है. पितृ पक्ष 16 दिन का होता है, जो भाद्रपद की पूर्णिमा को शुरू होता है और अश्विन की अमावस्या यानि सर्व पितृ अमावस्या को खत्म होता है. पितृ पक्ष के दौरान तर्पण श्राद्ध किया जाता है. मान्यता है कि पितृ पक्ष के दिनों में यमराज आत्मा को मुक्त कर देते हैं. जिससे वे अपने परिजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें. पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष दूर होता है. ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को अशुभ फल देने वाला माना गया है. अतः श्राद्ध में पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से आने वाली परेशानियां दूर होती हैं और पितरों का आशीर्वाद मिलता है. पितृ पक्ष के दौरान मृत परिजनों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए तर्पण किया जाता है. यहां जानिए श्राद्ध पूजा की सामग्री, श्राद्ध विधि, पितृ पक्ष तर्पण विधि, तर्पण विधि मंत्र, पितृ प्रार्थना, पितृ पक्ष का महत्व आदि के बारे में-
पितृपक्ष के मुख्य दिन
चौथ भरणी या भरणी पंचमी- गतवर्ष जिनकी मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध इस तिथि पर होता है.
मातृनवमी- अपने पति के जीवन काल में मरने वाली स्त्री का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है.
घात चतुर्दशी- युद्ध में या किसी तरह मारे गए व्यक्तियों का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है.
मातामह- नाना का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है.
महालया (पितृ विसर्जनी अमावस्या) – आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया कहते हैं. जो व्यक्ति पितृ पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण नहीं करते हैं, वे इस दिन अपने पितरों के श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं, वे भी श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को ही करते हैं. इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है.
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कौन कर सकता है श्राद्ध
श्राद्ध का पहला अधिकार बड़े पुत्र का है. बड़ा बेटा जीवित न हो तो उससे छोटा पुत्र श्राद्ध करता है.
बड़ा बेटा शादी के बाद पत्नी संग मिलकर श्राद्ध तर्पण करता है.
जिसका पुत्र न हो तो उसके भाई-भतीजे श्राद्ध कर्म कर सकते हैं.
अगर केवल पुत्री है तो उसका पुत्र श्राद्ध करता है.
रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी , रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता , पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़ , मिट्टी का दीया , रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना।
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श्राद्ध विधि
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि ऐसा संभव न हो तो आप खुद पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से देकर श्राद्ध कर सकते हैं. श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जो भी श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती. वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है. यहां जानिए श्राद्ध की विधि-
1. सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें.
2. महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं.
3. श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं.
4. ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं.
5. पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें.
7. ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें.
8. ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें.
9 . यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए. इससे भी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है.
10. हिन्दू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है. किसी गाय को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं.
11. यदि उपरोक्त में से कुछ भी संभव न हो तो गाय को शाक (साग) खिलाकर भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति की जा सकती है. इस प्रकार का श्राद्ध-कर्म एक लाख गुना फल प्रदान करता है. यदि शाक लेने का भी धन न हो तो खुले स्थान में दोनों हाथ ऊपर करके पितृगण के प्रति इस प्रकार कहे— हे मेरे समस्त पितृगण! मेरे पास श्राद्ध के निमित्त न धन है, न धान्य है, आपके लिए मात्र श्रद्धा है, अतः मैं आपको श्रद्धा-वचनों से तृप्त करना चाहता हूं. आप सब कृपया तृप्त हो जाएं. ऐसा करने से भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति कही गई है.
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श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
कौए को पितरों का रूप माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं. इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है.
परिजनों की श्राद्ध तिथि पर तर्पण करते समय पितरों की मुक्ति के लिए मंत्र जपे जाते हैं. पितरों को जल देने की विधि तर्पण कहलाती है. आज हम आपको कुछ ऐसे मंत्र बता रहे हैं, जिनका उच्चारण आप पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण करते समय जप सकते हैं. इसके लिए आप सबसे पहले पितरों का ध्यान करते हुए दोनों हाथ जोड़ लें. अब उन्हें ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम मंत्र के माध्यम से आमंत्रित करें. इस मंत्र का अर्थ होता है ‘हे पितरों, आइये और जलांजलि ग्रहण कीजिये.
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पितृ गायत्री मंत्र
1. ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
2. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
3. ओम् देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
4. ॐ पितृभ्यो नमः ॥
पितरों को जल देने की विधि तर्पण (Tarpan Mantra) कहलाई जाती है. ऐसे में तर्पण के समय कुछ मंत्रों का जाप (Pitru Paksha Main In Tarpan Mantron Ka Kare Jaap) किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसे मंत्रों के बारे में बपताने जा रहे हैं जिनका जाप आप तर्पण से दौरान कर सकते हैं.
पिता को तर्पण देते समय इस मंत्र का करें जाप- पिता को तर्पण देते समय गंगा जल में दूध, तिल और जौ मिलाकर तीन बार पिता को जलांजलि दें. जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों. फिर अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः.
दादा जी को तर्पण देते समय इस मंत्र का करें जाप- दादा जी को तर्पण देते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः.
माता को तर्पण देते समय इस मंत्र का करें जाप- माता को तर्पण देते समय अपने गोत्र का नाम (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः.
दादी को तर्पण देते समय इस मंत्र का करें जाप- दादी को को तर्पण देते समय गोत्र का नाम लें गोत्रे पितामां दादी का नाम देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः.
देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है. देवकार्य से भी ज्यादा पितृकार्य का महत्व होता है. पितृ हमारे वंश को बढ़ाते है, पितृ पूजन करने से परिवार में सुख-शांति, धन-धान्य, यश, वैभव, लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है. संतान का सुख भी पितृ ही प्रदान करते हैं. शास्त्रों में पितृ को पितृदेव कहा जाता है. पितृ पूजन प्रत्येक घर के शुभ कार्य में प्रथम किया जाता है. जो कि नांदी श्राद्ध के रूप में किया जाता है. भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन (क्वांर) की अमावस्या तक के समय को शास्त्रों में पितृपक्ष बताया है. इन 15 -16 दिनों में जो पुत्र अपने पिता, माता अथवा अपने वंश के पितरों का पूजन (तर्पण, पितृयज्ञ, धूप, श्राद्ध) करता है. वह अवश्य ही उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है. माना जाता है कि इन दिनों में जिनको पितृदोष है वह अवश्य त्रि-पिंडी श्राद्ध अथवा नारायण बली का पूजन किसी तीर्थस्थल पर कराएं. काक भोजन कराएं, तो उनके पितृ सद्गति को प्राप्त हो, बैकुंठ में स्थान पाते हैं. अपने पिता-पितामह, माता, मातामही, पितामही, माता के पिता, मातृ पक्ष, पत्नी के पिता, अपने भाई, बहन, सखा, गुरु, गुरुमाता का श्राद्ध मंत्रों का उच्चारण कर विधिवत संपन्न करें. ब्राह्मण का जोड़ा यानी पति-पत्नी को भोजन कराएं. पितृ अवश्य आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे.
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