पित्र गायत्री जाप – Pitra Gayatri Jaap
पितृ दोष निवारण पूजा अमावस्या तिथि, या पितृ पक्ष के काल में किसी भी दिन की जा सकती है। इस पूजा का उत्तम काल दोपहर का होता है। पितृ पक्ष में हर रोज़ पित्रों की शांति के निमित जल, जौं और काले तिल एवं पुष्प के साथ पित्रों का तर्पण कराने से पितृ दोष दूर होता हैं।
पितृ दोष के लक्षण
- पितृ दोष होने पर व्यक्ति के जीवन में संतान का सुख नहीं मिल पाता है। अगर मिलता भी है तो कई बार संतान विकलांग होती है, मंदबुद्धि होती है या फिर चरित्रहीन होती है या फिर कई बार बच्चे की पैदा होते ही मृत्यु हो जाती है।
- नौकरी और व्यवसाय में मेहनत करने के बावजूद भी हानि होती रहे।
- परिवार में अक्सर कलह बने रहना या फिर एकता न होना। परिवार में शांति का अभाव।
- परिवार में किसी न किसी व्यक्ति का सदैव अस्वस्थ बने रहना। इलाज करवाने के बाद भी ठीक न हो पाना।
- परिवार में विवाह योग्य लोगों का विवाह न हो पाना। या फिर विवाह होने के बाद तलाक हो जाना या फिर अलगाव रहना।
- पितृदोष होने पर अपनों से ही अक्सर धोखा मिलता है।
- पितृदोष होने पर व्यक्ति बार-बार दुर्घटना का शिकार होता है। उसके जीवन में होने वाले मांगलिक कार्यों में बाधाएं आती हैं।
- परिवार के सदस्यों पर अक्सर किसी प्रेत बाधा का प्रभाव बने रहना। घर में अक्सर तनाव और क्लेश रहना।
पितृ दोष निवारन
जीवन में तंगी/दुःख आमतौर पर पितृ दोष के कारण होती हैं।
यह दिवंगत पूर्वजों की आत्मा को निर्वाण न मिलने के कारण उत्पन्न होती है।
इसके अलावा, यह मुख्य रूप से तब होती है जब मृत पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला।
यह माना जाता है कि आपके पूर्वजों या दिवंगत पूर्वजों की आत्मा ने मोक्ष की तलाश में हैं, यदि उनकी मृत्यु अप्राकृतिक थी या उनकी कम उम्र में हुई थी।
अकाल मृत्यु के कारण, उनकी आत्माएं निर्वाण प्राप्त नहीं करती हैं और पृथ्वी पर भटकती हैं।
उपाय
शाम के समय पीपल के वृक्ष पर दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है. प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करें. ऐसा करने से भी पितृदोष का शमन होता है.
पितृ दोष निवारण के लिए पूजा
पितृ पक्ष माह की तिथियों में हर कोई अपने पूर्वजों को खुश करने के लिए तर्पण करता है। इस महीने में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं और इसको श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। असल मायने में श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान को दर्शना। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि अपने पितरों को श्राद्ध पक्ष में 15 दिनों तक एक विशेष समय में श्राद्ध या फिर सम्मान दिया जाए। इसी विशेष अवधि को श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है। इसी को कुछ लोग पितृ पक्ष के नाम से भी जानते हैं। पुराणों के अनुसार पितृ पक्ष की अवधि तब शुरू होती है जब कन्या राशि में सूर्य का प्रवेश होता है। इसी पितृ पक्ष के दौरान जब श्राद्ध किया जाता है तो उसका विशेष महत्व होता है और उसे सर्वोत्तम माना जाता है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
जिन लोगों को पितृ दोष होता है उन्हें किसी भी काम में सफलता नहीं हासिल होती है। ऐसे में व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसमें उसे हानि ही होती है। इसीलिए इस दोष से जल्द से जल्द मुक्त हो जाना चाहिए। इसके लिए सबसे सरल उपाय है कि व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध करे। इसके साथ ही घर में पितृ दोष के निवारण के लिए पूजा भी सम्पन्न करवाई जाती है। वैसे तो ये पूजा श्राद्ध पक्ष में करवाने से लाभ की प्राप्ति होती है। इस पूजा को पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन करवाने से भी पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
पितृ गायत्री
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्.
पितृ पक्ष तर्पण विधि
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहा जाता है. परिजनों की श्राद्ध तिथि पर तर्पण करते समय पितरों की मुक्ति के लिए मंत्र जपे जाने की परम्परा भी है. हम यहां आपको कुछ मंत्र बता रहे हैं, जिनको आप अपने पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण करते समय जप सकते हैं. इसके लिए सबसे पहले हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उनको इस मंत्र के माध्यम से आमंत्रित करें. ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ इस मंत्र का अर्थ है, हे पितरों, आइये और जलांजलि ग्रहण कीजिये.
पिता जी के तर्पण में जल देने का मंत्र
तर्पण के समय गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलाकर तीन बार पिता को जलांजलि दें. जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों. फिर अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
दादा जी के तर्पण में जल देने का मंत्र
जल देते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
माता के तर्पण में जल देने का मंत्र
(गोत्र का नाम) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
दादी के तर्पण में जल देने का मंत्र
(गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
अगर आप किसी कारणवश ऊपर दिए मंत्रों का उच्चारण नहीं कर सकते हैं तो आप अपने पितरों की मुक्ति के लिए पितृ गायत्री पाठ भी पढ़ सकते हैं. इसके साथ ही पितृ गायत्री मंत्र पढ़ने से भी पितरों को मुक्ति मिलती है और वे हमें आशीर्वाद देते हैं.
पितृ गायत्री मंत्र
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
ओम् देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।।
Reviews
There are no reviews yet.