कुलदेवी वंशजों के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं। आइये जानते हैं कुल देवी और कुल देवता को कैसे मनाएं
सामान्यतया कुल देवी और कुल देवता की पूजा वर्ष में एक बार या दो बार निश्चित समय पर की जाती है। इसका समय और पद्धति भी हर परिवार के अनुसार अलग होती है। इसके अलावा शादी-विवाह, मुंडन संस्कार, संतानोत्पत्ति आदि पर इनके दर्शन कर इनकी विशिष्ट पूजा की जाती है।
यदि यह सब बंद हो जाए या पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं में गड़बड़ी से या तो ये नाराज होते हैं या कोई मतलब न रखकर मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। इससे परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं।
इसके अलावा परिवार के लोगों के खराब और अधर्म के रास्ते पर चलने से भी कुल देवी और कुल देवता नाराज होते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता और कुलदेवी को जानना चाहिए। साथ ही समय समय पर उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा और उन्नति होती रहे।
कई लोग विशिष्ट अवसरों पर कुलदेवी और कुलदेवता की पूजा तो करते ही हैं। रोजाना भी उनका ध्यान करते हैं। इसके बावजूद उन्हें इच्छित फल प्राप्त नहीं हो पाता और परिवार संकट से घिरा रहता है। ऐसा होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक कारण कुल देवी या देवता की पूजा में त्रुटि हो सकती है।
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