गणेश-चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की सोलह उपचारों से वैदिक मन्त्रों के उच्चारण सहित पूजा की जाती है। भगवान की सोलह उपचारों से की जाने वाली पूजा को षोडशोपचार पूजा कहते हैं। गणेश-चतुर्थी की पूजा को विनायक-चतुर्थी पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान गणेश को प्रातःकाल, मध्याह्न और सायाह्न में से किसी भी समय पूजा जा सकता है। परन्तु गणेश-चतुर्थी के दिन मध्याह्न का समय गणेश-पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मध्याह्न के दौरान गणेश-पूजा का समय गणेश-चतुर्थी पूजा मुहूर्त कहलाता है।
गणेश-पूजा के समय किये जाने वाले सम्पूर्ण उपचारों को नीचे सम्मिलित किया गया है। इन उपचारों में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह उपचार भी सम्मिलित हैं। दीप-प्रज्वलन एवं सङ्कल्प, पूजा प्रारम्भ होने से पूर्व किये जाते हैं। अतः दीप-प्रज्वलन तथा सङ्कल्प षोडशोपचार पूजा के सोलह उपचारों में सम्मिलित नहीं होते हैं।
यदि भगवान गणपति आपके घर में अथवा पूजा स्थान में पहले से ही प्राण-प्रतिष्ठित हैं तो षोडशोपचार पूजा में सम्मिलित आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के उपचारों को त्याग देना चाहिये। आवाहन एवं प्राण-प्रतिष्ठा मिट्टी अथवा धातु से निर्मित नवीन गणपति मूर्ति की ही की जाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि घर अथवा पूजा स्थान में प्रतिष्ठित मूर्तियों का पूजा के पश्चात् विसर्जन के स्थान पर उत्थापन किया जाता है।
1. आवाहनम् एवं प्रतिष्ठापनम्
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आवाहनम्
सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुये भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा प्रदर्शित करके उनका आवाहन करें।
गणेश चतुर्थी आवाहन मन्त्रहे हेरम्ब! त्वमेह्येहि ह्यम्बिकात्र्यम्बकात्मज।
सिद्धिबुद्धिपते त्र्यक्ष लक्षलाभपितुः पितः॥
नागास्यं नागहारं त्वां गणराजं चतुर्भुजम्।
भूषितं स्वायुधैर्दिव्यैः पाशाङ्कुशपरस्वधैः॥प्रतिष्ठापनम्
आवाहन के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुये भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करें।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥ॐ सिद्धि-बुद्धि-सहिताय श्रीमहागणाधिपतये नमः।
सुप्रतिष्ठो वरदो भव॥
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