महर्षि वाल्मीकि की जीव
महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा | Maharshi Valmiki ki katha | वाल्मीकि की कहानी | valmiki ki kahani | कैसे डाकू से साधु बने वाल्मीकि
वाल्मीकि एक लुटेरा था, जो आने जाने वाले राहगीरों को लूटा करता था। एक दिन उसने ऐसे राहगीर को लूटने का प्रयास किया जिसके पास कुछ भी नहीं था। राहगीर कहने लगा,”मैं नारद हूं। तुम लोगों को लूटने का पाप क्यों करते हो? “लुटेरे ने कहा, “मुझे अपने परिवार का खर्चा चलाना होता है।”
नारद ने कहा, ” जाकर अपने परिवार से पूछो कि क्या वे लोग तुम्हारे पास में भी भागीदार बनने को तैयार है”।
लुटेरे ने घर जाकर अपने पिता से पूछा, “मैं लोगों को लूट कर रुपया पैसा लाता हूं। क्या आप मेरे पाप में भागीदार बनेंगे? “उसका पिता यह सुनकर गुस्सा हो पड़ा और चिल्लाया, दूर हो जा, लुटेरे, कहीं के! उसकी मां भी नाराज होते हुए बोली, “मैं क्यों तुम्हारे पास में भागीदार बनू? मैंने पूरे जीवन में कभी कुछ नहीं चुराया।” उसकी पत्नी कहने लगी, “मेरी जिम्मेदारी उठाना तो तुम्हारा कर्तव्य है।”
लूटेरा लौटकर नारद के पास आया तो नारद बोले, “हर कोई इस दुनिया में अकेला है। ईश्वर की पूजा करो। वही हमेशा तुम्हारे साथ रहता है।”
लुटेरे ने कई साल तक तपस्या की। एक दिन उसे आकाशवाणी सुनाई दी, “तुम्हारा नया नाम वाल्मीकि होगा तुम राम कथा लिखोगे।” वाल्मीकि ने ही रामायण की रचना की थी।
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