निशिता पूजा का समय – 12:09 ए एम से 12:54 ए एम, अगस्त 16
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 17, 2025 को 04:38 ए एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 18, 2025 को 03:17 ए एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 15, 2025 को 11:49 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 16, 2025 को 09:34 पी एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:03 ए एम से 12:49 ए एम, सितम्बर 05
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – सितम्बर 04, 2026 को 12:29 ए एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – सितम्बर 04, 2026 को 11:04 पी एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 04, 2026 को 02:25 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 05, 2026 को 12:13 ए एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:07 ए एम से 12:52 ए एम, अगस्त 26
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 25, 2027 को 12:27 पी एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 26, 2027 को 11:42 ए एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 24, 2027 को 08:24 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 25, 2027 को 07:19 पी एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:10 ए एम से 12:54 ए एम, अगस्त 14
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 14, 2028 को 05:51 पी एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 15, 2028 को 06:19 पी एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 13, 2028 को 04:42 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 14, 2028 को 05:36 ए एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:04 ए एम से 12:50 ए एम, सितम्बर 02
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – सितम्बर 01, 2029 को 12:32 ए एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – सितम्बर 02, 2029 को 02:58 ए एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2029 को 09:00 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2029 को 10:56 पी एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:08 ए एम से 12:52 ए एम, अगस्त 22
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 21, 2030 को 07:24 पी एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 22, 2030 को 10:30 पी एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 20, 2030 को 05:31 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 21, 2030 को 08:00 पी एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:11 ए एम से 12:54 ए एम, अगस्त 10
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 11, 2031 को 03:23 पी एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 12, 2031 को 06:07 पी एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 09, 2031 को 05:25 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 10, 2031 को 06:31 पी एम बजे
निशिता पूजा का समय – 12:05 ए एम से 12:51 ए एम, अगस्त 29
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ – अगस्त 27, 2032 को 11:39 पी एम बजे रोहिणी नक्षत्र समाप्त – अगस्त 29, 2032 को 12:41 ए एम बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 27, 2032 को 01:06 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 28, 2032 को 01:10 पी एम बजे
जन्माष्टमी व्रत की पूजा विधि
- जन्माष्टमी के दिन अष्टमी के व्रत से पूजा और नवमी के पारणा से व्रत की समाप्ति होती है।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने वाले भक्त को व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात सप्तमी तिथि पर हल्का एवं सात्विक भोजन करना चाहिए। रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन करें, साथ ही मन और इंद्रियों को नियंत्रण में रखें।
- जन्माष्टमी व्रत वाले दिन प्रातःकाल स्नानादि कार्यों से निवृत होकर समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करने के बाद पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाना चाहिए।
- अब हाथ में जल, फल और फूल लेकर संकल्प करें और मध्यान्ह काल में काले तिल के जल से स्नान या अपने ऊपर छिड़काव करने के बाद कर देवकी जी के लिए “प्रसूतिगृह” का निर्माण करें।
- अब इस सूतिका गृह में सुन्दर और कोमल बिछौना बिछाएं तथा उस पर शुभ कलश की स्थापना करें।
- इसके पश्चात भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती माँ देवकी की प्रतिमा या सुन्दर चित्र को स्थापित करें। इस पूजा मे देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी आदि का स्मरण करते हुए विधिवत पूजन करें।
- जन्माष्टमी का व्रत सदैव रात्रि के बारह बजे के बाद ही तोड़ा जाता है। इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे के पकौड़े, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाकर सेवन किया जा सकता है।
जन्माष्टमी की कथा
द्वापर युग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन का शासन था और उनके पुत्र का नाम कंस था। एक दिन कंस ने बलपूर्वक उग्रसेन से सिंहासन छीनकर उन्हें कारावास में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ हुआ था। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ पर सवार होकर जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई, “हे कंस! जिस बहन देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसकी आठवीं संतान ही तेरा वध करेगी। आकाशवाणी सुनने के बाद कंस क्रोध से भर गया और देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया,ये सोचकर कि न देवकी होगी न उसका पुत्र होगा
कंस को वासुदेव जी ने समझाया कि तुम्हें देवकी की आठवीं संतान से भय है, इसलिए मैँ अपनी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात को स्वीकार कर लिया और वासुदेव-देवकी को कारावास में कैद कर दिया। कंस ने देवकी के गर्भ से उत्पन्न सभी संतानों को निर्दयतापूर्वक मार डाला।
भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी दिव्य प्रकाश से जगमगा उठी। भगवान विष्णु ने अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर वासुदेव-देवकी जी से कहा, आप मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के घर पहुँचा दो और उनके जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने बिल्कुल वैसा ही किया।
कंस ने जब उस कन्या का वध करना चाहा, तब वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण करने के बाद बोली कि मुझे मारने से तुझे क्या लाभ है? तेरा शत्रु और देवकी की आठवीं संतान तो गोकुल पहुँच चुका है। यह सारा दृश्य देखकर कंस भयभीत और व्याकुल हो गया, इसलिए उसने श्रीकृष्ण की हत्या करने के लिए अनेक दैत्य भेजे। भगवान कृष्ण ने अपनी शक्ति से सभी दैत्यों का संहार कर दिया। अंत में उन्होंने कंस का वध करके उग्रसेन को वापस राजगद्दी पर बैठाया।
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जन्माष्टमी का महत्व
पंचांग के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार सामान्यतौर पर रोहिणी नक्षत्र में अगस्त या सितंबर के महीने में आता है। भगवान कृष्ण के भक्त, जन्माष्टमी को पूरे भारत सहित विदेशों में भी अत्यंत भक्तिभाव और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का एक बेहद ही महत्वपूर्ण और दिलचस्प पहलू है दही हांड़ी का अनुष्ठान जो हर साल जन्माष्टमी पर किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की सबसे पसंदीदा गतिविधि को दही हांड़ी का उत्सव दर्शाता है जहां युवाओं का समूह मिट्टी के हांड़ी रूपी बर्तन को तोड़ता है जिसे दही से भरा जाता है। जन्माष्टमी तिथि को मध्यरात्रि तक धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि मध्यरात्रि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांड़ी उत्सव को बहुत अधिक उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है।
हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भक्तों द्वारा व्रत रखकर घर-परिवार की सुख एवं शांति के लिए प्रभु से प्रार्थना की जाती हैं। जन्माष्टमी को मथुरा में बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है जो भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने और कृष्ण जी की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। संतान प्राप्ति,आयु और समृद्धि की प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी का पर्व विशेष महत्व रखता है।
कृष्ण जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण को जगत पालनहार भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है इसलिए यह पर्व अत्यंत महत्ता रखता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार के पूजन और भजन किये जाते हैं। इस अवसर पर देशभर के मंदिरों में विशेष सजावट करके भगवान के जन्मोत्सव को उत्साह के साथ मनाया जाता है। मध्यरात्रि के समय भगवान के जन्म के समय सभी लोग मंदिरों में एकत्रित होकर विशेष पूजा सम्पन्न करते हैं।
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