रुद्रयाग हवन विधि: (Rudra Yag Havan Vidhi) देवों के देव भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए रुद्र अनुष्ठान किया जाता है। अनुष्ठान के साथ भगवान शिव का अभिषेक पवित्र जल, दूध, शहद, दही, घी, गंगा जल, गन्ने का रस और बेल पत्र जैसी सामग्रियों से किया जाता है। हालांकि प्रत्येक सामग्री का अलग फल प्राप्त होता है। जुलाई में सावन के सोमवार शुरू होने वाले हैं और सावन में इस यज्ञ का महत्व और भी बढ़ जाता है। “रुद्र“ भगवान शिव का एक प्राचीन नाम है और “अभिषेक“ का अर्थ है स्नान या पवित्र जल से अभिषेक करना। सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी के अनुसार इस अनुष्ठान को करने के बाद व्यक्ति के मानसिक तनाव और चिंता में कमी आती है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वह खत्म हो जाता है। इसके साथ ही गृह क्लेश, टोना-टोटके भी बेअसर हो जाते हैं। यज्ञ में भाग लेने से पूर्व जन्मों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भोलेनाथ की कृपा से इस जन्म में भी कुंडली के पातक और महापातक कर्म जलकर नष्ट हो जाते हैं।
रुद्र यज्ञ हिन्दू धर्म में किया जाने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान है। यह स्मार्त यज्ञों में से एक है। यह तीन प्रकार का होता हैं- ‘रुद्र’, ‘महारुद्र’ और ‘अतिरुद्र’।
रुद्र यज्ञ 5-7-9 दिन में होता है। | रुद्रयाग में 16 अथवा 21 विद्वान होते हैं। | रुद्रयाग में हवन सामग्री 11 मन
महारुद्र 9-11 दिन में होता हैं। | महारुद्र में 31 अथवा 41 विद्वान होते हैं। | महारुद्र में 21 मन
अतिरुद्र 9-11 दिन में होता है। | अतिरुद्र याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते हैं। | अतिरुद्र में 70 मन हवन सामग्री लगती है।
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