शिव के पुत्र कार्तिकेय के बारे में चमत्कारी बात यह थी कि वह एक महान प्रयोग से जन्मे थे, जिसमें छह जीवों को एक शरीर में जीवन दिया गया था। पहले भी इस तरह के कई प्रयोग हुए हैं, जहां एक ही शरीर में दो योगी रहते थे। वे अलग-अलग भाषाएं बोलते थे और उनके अस्तित्व का तरीका भी अलग होता था। यह कैसे हुआ, इसके बारे में एक लंबी-चौड़ी कहानी है।
हालांकि शिव को पौरुष का प्रतीक माना जाता है, मगर उनकी कोई संतान नहीं थी। कहा जाता है कि कोई स्त्री उनके बीज को अपने गर्भ में धारण नहीं कर सकती थी। इसके कारण, उन्होंने अपना बीज एक हवन कुंड में डाल दिया। हवन कुंड का मतलब जरूरी नहीं है कि आग का कुंड। वह एक ‘होम कुंड’ होता है। होम कुंड ऋषियों के लिए एक प्रयोगशाला की तरह था, जहां वे कई चीजों को उत्पन्न करते थे।
कृतिकाओं ने धारण किया शिव का बीज
होम कुंड से, छह कृतिकाओं ने शिव का बीज अपने गर्भ में धारण किया। ये कृतिकाएं अप्सराएं या कहें गैर इंसानी प्राणी थीं। वे इस धरती की नहीं थीं और उनकी क्षमता बहुत उच्च स्तर की थी। इसलिए शिव का बीज इन छह कृतिकाओं ने धारण किया। उन्होंने साढ़े तीन महीने तक उस बीज को गर्भ में धारण रखा, उसके बाद जीवन आकार लेने लगा और छह भ्रूण विकसित हुए। इसके बाद कृतिकाओं को लगा कि यह बीज उनके लिए कुछ ज्यादा गर्म है और वे उसे और ज्यादा समय तक धारण नहीं कर सकतीं। चूंकि ये कृतिकाएं मुख्य रूप से एक आयाम से दूसरे आयाम में भ्रमण करती रहती थीं, इसलिए उनमें सृष्टि के किसी खास अंश के प्रति जिम्मेदारी की कोई भावना नहीं थी। इसलिए, जाते समय उन्होंने इन बच्चों को अपने गर्भ से बाहर निकाल दिया। उस समय वे बीज से थोड़ी ज्यादा विकसित अवस्था में थे। फिर वे चली गईं।
कार्तिकेय का जन्म
पार्वती खुद शिव के बच्चे को जन्म नहीं दे पाई थीं, इसलिए वह इसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहती थीं। उन्होंने इन छह अल्पविकसित बच्चों को कमल के पत्तों में लपेटकर उनके विकास की स्थिति पैदा करने की कोशिश की। वह देख सकती थीं कि अलग-अलग उनके बचने की संभावना बहुत कम है क्योंकि वे पूर्ण विकसित नहीं थे। मगर उन्हें यह लगा कि इन छह भ्रूणों में छह शानदार गुण हैं। पार्वती ने सोचा, ‘अगर ये सभी गुण किसी एक पुरुष में हो, तो वह कितना अद्भुत होगा।’ अपनी तांत्रिक शक्तियों के जरिये उन्होंने इन छह नन्हें भ्रूणों को एक में मिला दिया। उन्होंने एक ही शरीर में छह जीवों को समाविष्ट कर दिया, जिसके बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ। आज भी, कार्तिकेय को ‘अरुमुगा’ या छह चेहरों वाले देवता की तरह देखा जाता है। वह एक अद्भुत क्षमता वाले इंसान थे। 8 साल की उम्र में ही वह एक अजेय योद्धा बन गए थे।
एक बार ऐसा हुआ कि गणपति और कार्तिकेय में एक छोटी सी झड़प हो गई। कार्तिकेय को अपने वाहन, तेजी से उड़ने वाले मोर, पर बहुत गर्व था। दोनों में बहस छिड़ गई। फिर उन्होंने आपस में एक प्रतियोगिता करने का फैसला किया कि कौन सबसे तीव्र गति से दुनिया का चक्कर लगा सकता है। जो भी जीतेगा, उसे मां-बाप से एक खास तरह का आम मिलेगा।
हालांकि शिव को पौरुष का प्रतीक माना जाता है, मगर उनकी कोई संतान नहीं थी। कहा जाता है कि कोई स्त्री उनके बीज को अपने गर्भ में धारण नहीं कर सकती थी। इसके कारण, उन्होंने अपना बीज एक हवन कुंड में डाल दिया।
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