सनातन धर्म में शक्ति पूजा का विशेष महत्व है।
शक्ति पूजा में तांत्रिक विधि को बहुत महत्व दिया गया है। तांत्रिक विधि से 10 महाविद्याओं का पूजन करने पर असंभव लगने वाले काम भी संभव हो जाते हैं। फिर चाहें वो कोई सिद्धि प्राप्त करना हो या संकट का समाधान करना हो।
सभी 10 महाविद्याओं में सर्वाधिक महिमा 8वीं महाविद्या माता बगलामुखी की बताई गई है। माता बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। उनकी पूजा करने वाले को शत्रु, रोग, मुकदमे और चुनाव में आसानी से जीत मिल जाती है
माता बगलामुखी को पीताम्बरा, शत्रु बुद्धिविनाशिनी और ब्रह्मास्त्र रूपिणी भी कहा जाता है और वह प्रत्येक परिस्थिति को भक्त के पक्ष में पलटते हुए शत्रु के विपरीत में बदल देती हैं। यही कारण है कि, कर्ज की समाप्ति और मुकदमे या चुनाव जीतने की इच्छा को माता सहज पूरा कर देती है।
देवी भागवत में माता बगलामुखी को अलौकिक सिद्धियों, ऋद्धियों के साथ ही अर्थ, सौभाग्य, समृद्धि और धन देने वाली बताया गया है। ये सभी फल माता की सात्विक विधि से उपासना करके भी प्राप्त किए जा सकते हैं।
वहीं प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रंथ ‘रुद्रयामाल’ के एक भाग ‘बगलामुखी स्त़़ोत्रम’ में देवी बगलामुखी की शक्तियों की स्तुति की गई है। संस्कृत भाषा के एक श्लोक में कहा गया है कि,
“वदि मुकाति रंकति क्षितिपतिर्वैश्वनरः शीतति क्रोधि संयति दुर्जनः सुजानाति क्षीप्रानुगाः खंजति।
गरवि खंजति सर्वाविच्च जरति त्वन्मंत्रिनामंत्रितः श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं तुभ्यं नमः”
इस श्लोक का अर्थ है:
(आपके मंत्र के प्रभाव से अच्छे-अच्छे बातचीत करने वाले निःशब्द हो जाते हैं; भिखारी भी धनवान बन जाते हैं; जंगल में लगी विनाशकारी अग्नि शांत हो जाती है। क्रोधी व्यक्ति का क्रोध दूर हो जाता है; दुष्ट मन वाला व्यक्ति अच्छा बन जाता है। विकलांग भी जल्दी चलने वाला हो जाता है। अहंकारी व्यक्ति का अहंकार नष्ट हो जाता है। ऐसी दयालु माता बगलामुखी को नमस्कार है!)
माता बगलामुखी का बीज मंत्र :
- ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:
माता बगलामुखी का छोटा बीज मंत्र:
- ऊँ ह्लीं बगुलामुखी देव्यै ह्लीं ओम नम:
-
माता बगलामुखी चालीसा नं. 1 :
अथ श्री बगलामुखी चालीसा ।।
नमो महाविद्या बरदा , बगलामुखी दयाल।
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ।।1।।
नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी।
भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविद्या वरदानी ।।2।।
अमृत सागर बीच तुम्हारा , रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा।
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना , पीताम्बर अति दिव्य नवीना ।।3।।
स्वर्णाभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे।
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला ।।4।।
भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई।
तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा ।।5।।
तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी ।
छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी ।।6।।
सकल शक्तियां तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे ।
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन ।।7।।
दुष्टोच्चाटन कारक माता, अरि जिह्वा कीलक सघाता ।
साधक के विपति की त्राता, नमो महामाया प्रख्याता ।।8।।
मुद्गर शिला लिये अति भारी, प्रेतासन पर किये सवारी।
तीन लोक दस दिशा भवानी, बिचरहु तुम हित कल्यानी ।।9।।
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को, बुद्धि नाश कर कीलक तन को ।
हाथ पांव बांधहु तुम ताके, हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके ।।10।।
चोरों का जब संकट आवे, रण में रिपुओं से घिर जावे।
अनल अनिल बिप्लव घहरावे, वाद विवाद न निर्णय पावे ।।11।।?
मूठ आदि अभिचारण संकट. राजभीति आपत्ति सन्निकट।
ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे ।।12।।
सुमरित राजव्दार बंध जावे, सभा बीच स्तम्भन छावे।
नाग सर्प बिछिकादी भयंकर, खल विहंग भागहिं सब सत्वर ।।13।।
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी ।
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, नमो नमो पीताम्बर सोहक ।।14।।
तुमको सदा कुबेर मनावे, श्री समृद्धि सुयश नित गावें।
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता, दुःख दारिद्र विनाशक माता ।।15।।
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता, शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता।
पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी ।।16।।
जो तुमको सुमरै चितलाई, योग क्षेम से करो सहाई।
आपत्ति जन की तुरत निवारो, आधि व्याधि संकट सब टारो ।।17।।
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूं निहोरी ।
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया, हाथ जोड़ शरणागत आया ।।18।।
जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुं निवारा।
नमो महादेवी हे माता, पीताम्बरा नमो सुखदाता ।।19।।
सौम्य रूप धर बनती माता, सुख सम्पत्ति सुयश की दाता।
रौद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिह्वा में मुद्गर मारो ।।20।।
नमो महाविद्या अगारा, आदि शक्ति सुन्दरी अपारा।
अरि भंजक विपत्ति की त्राता, दया करो पीताम्बरी माता ।।21।।
रिद्धि-सिद्धि दाता तुम्हीं, अरि समूल कुल काल।
मेरी सब बाधा हरो, मां बगले तत्काल ।।22।।
।। इति श्री बगलामुखी चालीसा पाठ समाप्त ।।
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