हमारी इस भारतीय संस्कृति में पूजा करने के लिए अनेक प्रकार के रीति – रिवाजों को मानने की परंपरा है| कलश पूजन भी उन्ही में से एक है| हिन्दू धर्म के लोगों के लिए मांगलिक कार्यों और पूजा – पाठ के दौरान कलश पूजा बहुत ही विशेष महत्व है|
शास्त्रों के अनुसार यह बताया गया है कि कलश को वैभव और सुख – समृद्धि का प्रतीक माना जाता है| कलश की स्थापना के बारे में वर्णन देवी पुराण में बताया गया कि किसी भी भगवान की पूजा करने से पहले कलश स्थापित करके कलश पूजन किया जाता है|
सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बहुत बड़ा महत्व माना गया है| जैसे कि सभी मांगलिक कार्य, नए व्यापार की शुरुआत, गृह प्रवेश पूजा, दीवाली पूजन, नववर्ष प्रारम्भ, यज्ञ एवं अनुष्ठान के अवसर पर सबसे पहले कलश को कलश पूजन के लिए स्थापित किया जाता है|
वरान्त के समय नौ दिनों तक मंदिरों और घरों में कलश को स्थापित करके कलश और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है| कलश में भरा हुआ पवित्र जल लोगों को इस बात का संकेत देता है| सभी इस जल की भांति ही अपने मन को भी शीतल और स्वच्छ रखना चाहिए और किसी भी व्यक्ति के प्रति स्वार्थ की भावना ना रखे| हमे अपने मन को श्रद्धा, सरतला और संवेदना के भरकर रखना चाहिए|
पौराणिक कथाओं के अनुसार मनुष्य के शरीर की तुलना भी मिट्टी के कलश से की गई है| कलश के समान ही इस शरीर में भी प्राण रूपी जल भरा हुआ है| जिस प्रकार बिना प्राण के इस शरीर को अशुभ माना जाता है उसी प्रकार ही खाली कलश को भी अशुभ ही माना जाता है| इसी वजह से कलश पूजन के समय पानी, दूध, आम्रपत्र (आम के पत्ते), अक्षत (चावल), अनाज, और नारियल आदि को रखा जाता है|
क्यों किया जाता है कलश पूजन
हिन्दू धर्म में सभी प्रकार की पूजा तथा धार्मिक अनुष्ठानों में सामग्री के साथ अन्य भी बहुत सारी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है| जैसे कि पानी, फूल, घंटी, शंख, आसन और कलश, जो कि हर पूजा में विशेष भूमिका निभाते है|
हिन्दू धर्म में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के लिए कलश को पूजन के लिए स्थापित किया जाता है| हमारी इस भारतीय संस्कृति में कोई भी बिना कलश पूजन के प्रारम्भ नहीं किया जाता है| शास्त्रों के अनुसार कलश को इस समस्त ब्रह्माण्ड के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है|
कलश पूजन के सम्बंधित वैज्ञानिक रहस्यों में यह बताया गया है कि किसी भी धार्मिक कार्यों व मांगलिक कार्यों में कलश पूजन के समय कलश में पानी (जल) भरा जाता है| कलश एक ऊर्जा के पिंड के समान हो
भारतीय हिन्दू संस्कृति में नवरात्रि के समय घर और मंदिरों में कलश पूजन के लिए कलश की स्थापना की जाती है| उसके पश्चात इस कलश के सामने ही व्यक्ति अपनी श्रद्धा के अनुसार तंत्र, मंत्र से साधना करता है| इस समय कलश को दैवीय शक्ति का रूप ही माना जाता है| यह कलश इतना पवित्र है कि इसे छूने मात्र से ही व्यक्ति के सारे दुःख और कष्ट दूर हो जाते है|
हमारे धर्म ग्रंथों में कलश के बारे में वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु की नाभि कमल से इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई है और कमल से ब्रह्मा जी की| कलश में रखे हुए जल को उस जल के भांति माना जाता है| जिस जल से इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पति हुई है|
कलश स्थापना करने की सामग्री
- जौ से भरा हुआ मिट्टी का पात्र
- एक मिट्टी का कलश/ सोने का कलश/ चांदी का कलश
- आम की पत्तियां
- अक्षत (चावल)
- सुपारी
- कोट
- लाल कपडा
- लाल चुन्नी
- कलावा
- मिट्टी का ढक्कन
- गंगाजल
- मिट्टी का दीपक
- पान के लिए
- फूल – माला
- भोग के लिए फल व मिठाई
- रंगोली के लिए आटा
- मिट्टी की कटोरी के ऊपर रखने के लिए चावल या गेहूं
- 1 और 2 रुपये के सिक्के
कलश पूजन की विधि
सबसे पहले स्नान आदि से निवृत होकर पूजा स्थल पर चले जाए| उसके पश्चात सभी श्रेष्ठ कुल देवता, ग्राम देवता और इष्ट देवता व पितरो को प्रणाम करने के बाद शांति से आसन पर बैठे| उसके बाद में आचमण प्राणायाम के द्वारा अपने मन को शुद्ध अवश्य करे| फिर पूजा की शुरुआत करते है| कलश पूजन धन, सुख – समृद्धि, और सौभाग्य को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से की जाती है|
इस पूजा को भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति के लिए भी की जा सकती है| इस पूजा की सहायता से सभी कठिन कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है| यह पूजा करने से आपको सुख, शांति और समृद्धि का आशिर्वाद मिलता है|
कलश गणेश की पूजा हिन्दू धर्म में सबसे प्रचलित पूजा मानी जाती है| इस पूजा में एक कलश में जल को भरकर उसमे गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है| इस पूजा को धन और समृद्धि पाने के लिए की जाती है|
कलश प्रार्थना का मंत्र
भूमि स्पर्श करें –
ॐ भूरासि भूरासि अदितिसी विश्वधाय विश्वस्य भुवनस्य धारत्रि। मुझे पृथ्वी दो, और मैं तुम्हें पृथ्वी दूंगा, और मैं तुम्हें पृथ्वी दूंगा।
ॐ धरती, आकाश और पृय्वी इस बलिदान को न देखें, परन्तु वे हमें पेट भर कर पियें।
सप्तधान्य कलश के नीचे रखें हाथ-
ॐ धन्यमसि धिनुहि देवं प्रणयत्व दानयत्व व्यनत्व।
सूर्य-देवता, जो अपने हाथ में सोना रखते हैं, सभी अनाज का स्रोत हैं, और आप लंबे जीवन के लिए सभी सुखों का स्रोत हैं।
कलश के नीचे धान्य के हाथ लगावे –
जड़ी-बूटियों ने चंद्रमा और राजा की बात मान ली।
हे राजन, जो भी ब्राह्मण यज्ञ करेगा, हम उसे प्रतिफल देंगे।
कलश की स्थापना करे –
ॐ अजीघ्र कलशम्मह्य त्वा विशन्तु।
फिर अपनी सांस रोककर पयस्वती नदी एक हजार वर्ष के लिए पर्वत में समा गयी
कलश में जल भरे –
ॐ आप भगवान वरुण के स्रोत हैं, और आप भगवान के निवास स्थान हैं।
कलश को हाथ लगाकर मंत्र पढ़े –
ॐ वह अकेलेशु में दौड़ता है, पवित्र में छिड़का जाता है, और उकठा के बलिदानों में बढ़ता है
तीर्थ जल –
यह शुतुद्रि स्तोम है, जिसे यमुना और सरस्वती में सचत-पुरुषन द्वारा गाया जाता है।
“मुझसे मरुदवृत में जन्मे असिक के जीवन के बारे में सुनो
सर्वोषधि डाले –
वे जड़ी-बूटियाँ जो तीन युग पहले देवताओं से उत्पन्न हुई थीं
पशुओं के मन के अनुसार एक सौ सात निवास हैं।
चंदन लगाये –
ॐ सुगन्ध का द्वार, अजेय, सर्वदा पोषित करी
मैं उन्हें भाग्य की देवी की पेशकश करता हूं, जो सभी जीवों की नियंत्रक हैं।
कुशा अर्पित करे –
ॐ हे पवित्र स्थान पर स्थित वैष्णवों, मैं तुम्हें छिद्र के माध्यम से पवित्र सूर्य की किरणों से पवित्र करता हूं। इसलिए, हे पवित्र के भगवान, पवित्र और शुद्ध की जो भी इच्छा है उसे शुद्ध किया जाना है।
सप्तमृतिका प्रदान करे –
ॐ सियोना, पृथ्वी, तुम ही हमारे निवास स्थान हो, रीछ। अपने रीति-रिवाजों से हमें शांति दो।
पूगीफल (सुपारी) चढ़ाए –
ॐ जो भी फलदायक है, जो भी निष्फल है, जो भी अफूलित है, और जो भी पुष्पित है। बृहस्पति उन लोगों को रिहा करें जिन्होंने उन्हें जन्म दिया है
ॐ उत्तस्मास्याद्रवतास्तुरन्यत्तः पर्णन्नवेरनुवती प्रगर्धिनाः। तलवार का अंक बजाने वाले बाज को स्वाहा
पंचरत्न –
ॐ सहिरारण्यानि दशुशेसुवतीसविता भग। हम उस हिस्से का चित्रण करने जा रहे हैं।
ॐ परिवजपतिः कविरग्नि हव्यन्या क्रमिता। आपने मुझे प्रभु की सुनहरी आंखें दीं।
लाल वस्त्र सूत्र बांधे –
युवा, अच्छे कपड़े पहने हुए, वह आया और एक बेहतर इंसान बन गया।
वह दृढ़ कवि अपने मन से उसकी पूजा करके उसे ऊँचा उठाता है।
ॐ सुजातो ज्योतिष सहः शर्मा वरुथमादत्सवः।
वासो, हे अग्नि, विश्वरूपा, ऋथा, वाममार्गी, अक्षय, अग्नि।
कलश और वरुण देवता का ध्यान करके उनका पूजन करे –
ॐ इस तत्त्वयामि का शेष ऋषि शुन है, त्रिशुप मंत्र वरुण है और विनियोग देवता को ले जाने के लिए है।
कलश में घर को स्थापना करने के फायदे
अमृत घड़ा
इस मंगल कलश को समुंद्र मन्थन का प्रतीक भी माना जाता है| सुख और समृद्धि के प्रतीक इस कलश को घड़े के नाम से भी जाना जाता है| हिन्दू धर्म में जल को बहुत ही पवित्र माना जाता है| इसी कारण से जल को किसी भी पात्र में भरकर मंदिर में अवश्य रखा जाता है|
इससे पूजा में सफलता प्राप्त होती है| इस कलश को उसी तरह से निर्मित किया गया है| जिस तरह से समुंद्र मन्थन में मंदराचल को मथ कर अमृत को निकला गया था| यह कलश जो होता है| इसे भगवान विष्णु और इसके जल को क्षीरसागर के समान माना गया है|
ईशान कोण में जल की स्थापना
हिन्दू धर्म के शास्त्रों के अनुसार कलश में जल भरकर उसको ईशान कोण में रखने से घर में सुख समृद्धि बढ़ती है| इसलिए मंगल कलश के रूप में पवित्र जल की स्थापना घर में की जाती है| अत: घर में ईशान कोण के स्थान को हमेशा खाली ही रखना चाहिए| और उस स्थान पर हमेशा ही मंगल कलश की स्थापना की जानी चाहिए|
शुद्ध और सकारात्मक वातावरण बना रहता है
मान्यता है कि तांबे के पात्र में जल भरकर रखने से उस पात्र में से विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है| कलश और जल दोनों के सम्मिलन से एक अद्भुत ब्रह्मांडीय ऊर्जा के समान ही वातावरण निर्मित होता है| जो कि वातावरण को दिव्य बनाता है| इस मंगल कलश में जो सूत बांधा जाता है|
वह सूत ऊर्जा को बांधकर वर्तुलाकार वलय की संरचना का निर्माण करता है| इस प्रकार से ही सकारात्मक और शुद्ध वातावरण निर्मित होता है| जो धीरे – धीरे सम्पूर्ण घर में फैल जाता है| कलश से सम्बंधित एक पौराणिक कथा भी है| जिसमें समुद्र मंथन के समय अमृत से भरा हुआ कलश ही सभी देवताओं और असुरों से सामने प्रकट हुआ था|
कलश पूजन का महत्व
हमारे धर्म ग्रंथों में कलश के बारे में वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु की नाभि कमल से इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई है और कमल से ब्रह्मा जी की| कलश में रखे हुए जल को उस जल के भांति माना जाता है| जिस जल से इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पति हुई है| कलश के शास्त्रीय धार्मिक आधार है|
कलश जलपात्र होता है| और जल के बिना किसी भी मनुष्य का जीवन संभव नहीं है| जिस घर मे मांगलिक कार्यों में कलश पूजन किया जाता है| उस घर में हमेशा ही सुख – समृद्धि बनी रहती है| इस मंगल कलश को समुद्र मंथन का प्रतीक भी माना जाता है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार मनुष्य के शरीर की तुलना भी मिट्टी के कलश से की गई है| कलश के समान ही इस शरीर में भी प्राण रूपी जल भरा हुआ है| जिस प्रकार बिना प्राण के इस शरीर को अशुभ माना जाता है उसी प्रकार ही खाली कलश को भी अशुभ ही माना जाता है| किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले कलश में जल भरकर कलश का पूजन किया जाता है|
इसके द्वारा व्यक्ति जल को उसके प्रति अपना आभार प्रकट करता है| सभी जानते है कि इस संसार में जल के बिना जीवन संभव नहीं है| इस संसार में जल ही एक ऐसा तत्व है जिसका कोई आकार निश्चित नहीं है|
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