मान्यता के अनुसार, व्यक्ति को उसके पूर्व कर्मों के अनुसार, ही फल की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों में दान पुण्य का अधिक महत्व बताया गया है। दान पुण्य से दुखों का निवारण होता है। साथ ही व्यक्ति को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।
पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार मानव को सुख-दुःख प्राप्त होता है। व्यक्ति जो भी कर्म आज करता है, उसका प्रतिफल भविष्य में उसे मिलता है। जो आप देंगे, वही आप पाएंगे, यह अखिल ब्रह्माण्ड का नियम है, इसलिए सभी धर्मों में दान द्वारा दुःख निवारण का विधान बताया गया है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो दान का अभिप्राय है, देना और फिर पाना। जो भी आपने पिछले जन्म में दिया, उसका फल आप इस जन्म में भोग रहे हैं। धर्मशास्त्रों की मानें तो, आपके पास जो भी हैं वह आपकी बुद्धि की वजह से नहीं, बल्कि आपके पुण्य की वजह से है। दान करने से ग्रह पीड़ा एवं दुःखों का निवारण होने के साथ असीम पुण्य प्राप्त होता है।
कल्पवृक्ष के समान मनोकामनाएं पूरी करता है गुप्तदान – दान अनेक प्रकार से किया जाता है, गुप्तदान एक ऐसा दान है जो कल्पवृक्ष के समान मनुष्य की मनोकमानाऐं पूर्ण करता है तथा दीवार की भांति मुसीबतों से रक्षा करता है। वेदों के अनुसार दान इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि एक हाथ से दान किया जाये तो दूसरे हाथ को पता भी न चले, इसीलिए गुप्तदान शीघ्र प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण माना गया है।
गुप्तदान विधान – वैदिक मान्यताओं के अनुसार गुप्तदान की मंशा रखने वाला श्रद्धालु किसी भी तीर्थ स्थल में गंगा, यमुना अथवा कोई भी पवित्र नदी के जल में डुबकी लगाते वक्त जल में सिक्के या जेवर डाल देते हैं। स्त्रियां अमावस्या, पूर्णमासी, पर्व आदि के समय किसी छोटे से पात्र में रूपए, स्वर्ण, चांदी रखकर नदी में डुबकी लगाते-लगाते बालू के नीचे दबा देती हैं। ये सब गुप्त रूप से करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति मिलती है। कुछ लोग चुपचाप मुट्ठी में रखकर कोई भी चीज किसी सुपात्र को देकर आगे बढ़ जाते हैं। वे दान लेने वाले को अपना परिचय नहीं देते, वे कोई संकल्प नहीं पढ़ते। गुप्तदान के विषय में कभी भी किसी को कुछ नहीं बताया जाता। शास्त्र अनुसार गुप्तदान इतना गोपनीय है कि पत्नी-पति को और पति-पत्नी को भी इसके बारे में जानकारी नहीं देते। गुप्तदान बिना किसी कर्मकाण्ड के किया जा सकता है। इस दान के लिए किसी सहायता की जरूरत नहीं होती। श्रद्धालु अकेले ही यह दान करता है
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